इंटरनेट ने पूरी दुनिया को जोड़ने दिया है। और इन्फोर्मेशन के आदान - प्रदान का एक क्रांतिकारी युग शुरू हुआ है बहुत सारे प्रश्न पुछे जाते हैं मुझसे इंटरनेट के बारे मे जिसका इंटरनेट से जुड़ा पूरा समाधान इस आर्टिकल मे करने वाला हूँ। 



1.) इंटरनेट का आविष्कार कैसे हुआ? 



आज के इस व्यापक और आधुनिक मायाजाल समान मूल कोल्ड वोर है। 1960-70 के दशक मे कोल्ड वोर एक लेवल पर था और रसिया व अमेरिका दोनों देशों के सर पर परमाणु हमले की तलवार लटक रही थी। अगर परमाणु बम का हमला होता है तो इन हालत में निकलने वाले विकिरणों के कारण संदेश का आदान - प्रदान ही खत्म हो जाएगा। और आप अपने देश के किसी सेना के डिवीजन को या नेता को कोई भी सिक्रेट संदेश नहीं भेज सकते। इन सब खतरो को अमेरिका ने पहले ही भाप लिया था। इसलिए अमेरिका ने ऐसी कार्यप्रणाली बनाने की सोची जो अण्डरग्राउंड केबल के द्वारा एक कम्प्यूटर को दुसरे कम्प्यूटर से जोडती हो। जिसके चलते पूरे देश के सरकारी और इम्पोर्टेन्ट कम्प्यूटर को आसानी से कोई भी संदेश को पहुचाया जा सके। और अमेरिका के राष्ट्रपति देश के किसी भी कोने के बंकर मे हो फिर भी उन्हें contact करके उनके डिसीजन को इम्पलिमेन्ट किया जा सके। अमेरिका की सरकार के ये भी दरखास्त थी। कि इसका कोई केन्द्र ना हो क्योंकि मान लिजिए इंटरनेट मायाजाल का केन्द्र न्यू यॉर्क मे है और न्यू यॉर्क के केन्द्र से देश के सारे कम्प्यूटर जुड़े हुए है। 


तो अगर न्यू यॉर्क पे हमला होता है या न्यू यॉर्क के केन्द्र को कोई नुकसान होता है तो पूरे देश के कम्प्यूटर एक दुसरे से Cutoff हो जाएंगे। इसलिए एक ऐसी संचालित कार्यप्रणाली बनानी थी जिसे Power on करते ही देश के सारे कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड जाए और इस नेटवर्क का अगर कोई भी हिस्सा काम करना बंद कर दे तो पूरे नेटवर्क को नुकसान ना हो और जिसका कंट्रोल ओपरेटिव केन्द्र ही ना हो आखिरकार ऐसे नेटवर्क को बनाने के लिए पैन्टागोन के ARPA ( Advanced research project agency) को नियुक्त किया गया। अमेरिकी रिसर्च र ARPA और अमेरिकी सरकार ने मिलजुलकर एक ऐसी ही नेटवर्क का सलजन किया जिसे शुरुआत में आरपोनेट कहा गया। अमेरिका के सभी खास कम्प्यूटर को आरपोनेट से जोड़ दिया गया। साल 1990 आते - आते could work खत्म होने के कगार पे आ गया और उस वक्त परमाणु युद्ध के काले बादल भी हट चुके थे। इसलिए डिफेंस के लिए खोजी गईं इस आरपोनेट टेकनोलोजी को अमेरिकी सरकार ने ( National science Foundation) को सौंप दिया और ये आधुनिक सिक्रेट आविष्कार अब सार्वजनिक बन चुका था जो 1990 मे ही आरपोनेट की जगह इंटरनेट के नाम से जाना जाने लगा। अब तक इंटरनेट मे कोई वेबसाईट या डोमेन जैसी चीज नही थी। क्योंकि 1990 तक एक कम्प्यूटर को दुसरे कम्प्यूटर से लेन के द्वारा जोडा जाता था। और अगर हमे कोई डेटा चाहिए तो डेटा किस कम्प्यूटर में है उसका हमे पता होना चाहिए अगर हमे पता नहीं है कि कौनसा डेटा किस कम्प्यूटर में है तो हम उसे नहीं पा सकते। इस तरीके से आरपोनेट काम करता था। लेकिन 1991 मे तीन बर्नस्टीन लीन नाम के वैज्ञानिक ने इस समस्या को हमेशा के लिए सुलझा दिया। जब उन्होंने www यानि (world wide web) की खोज की कुछ ही समय मे www इंटरनेशनल बन गया और सारे डोमेन इस नाम से रजिस्ट्रेशन होने लगे। 



2.) इंटरनेट का मालिक कौन है? 


सच बात कहूँ तो इसका कोई मालिक नहीं है या उसे उपयोग करने वाले सब उसके मालिक है क्योंकि इंटरनेट का आविष्कार अमेरिका के पब्लिक सेक्टर मे हुआ है। जिसमें अमेरिकी डिफेंस और रिसर्च युनिवर्सिटी के पैसे लगे थे। अगर इसका आविष्कार किसी प्राईवेट सेक्टर ने किया होता तो कम्पनियां अपने नाम की पैटर्न बनवाकर नफा खोरी शुरू कर देती लेकिन पुंजीवादी देश की सरकार या सरकार के थ्रु चलने वाली युनिवर्सिटी को बिजनेस मे कोई दिलचस्पी नहीं होती। आगे भी AM, FM रेडियो टेलीविजन की खोज सरकार के पैसों द्वारा Sponsor की गई और उन खोजों को प्राईवेट यूज़ के लिए ट्रांसफर कर दिया गया ठीक उसी प्रकार अमेरिका ने इंटरनेट की खोज को भी पब्लिक यूज के लिए दे दिया अमेरिका की पहले से ही डिफेंस मे यूज़ की जाने वाली खोजो को पब्लिक दे देने कि नीति रही है। 

हमारे यहाँ एक कहावत है कि जिसका राजा व्यपारि उसकी प्रजा भिखारी ये कहावत अमेरिकी सरकार जानती हो या नहीं जानती हो लेकिन उसने कभी अपनी खोजो का अपने देश के लोगों के साथ बिजनेस नहीं किया। और इस तरह इंटरनेट के इस विशाल मायाजाल पर किसी का भी हक नहीं रहा और वो पब्लिक यूज़ के लिए उपयोग किया जाने लगा। परिणाम स्वरूप विश्व मे कई सारे छोटे - छोटे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर यानि ISP शुरू हो गए। जिन्होंने अपने लोकल नेटवर्क को वैश्विक इंटरनेट के साथ जोड़ दिया और इस तरह इंटरनेट के जाल पूरी दुनिया मे फैल गई। ये वही प्राईवेट सर्विस प्रोवाइडर है जो हमसे डेटा के लिए कुछ पैसे लेते हैं।



3.) विश्व के इंटरनेट का मायाजाल कितना बड़ा है? 


इसका जवाब यह है कि हम कल्पना भी न कर सके उतना बड़ा फिर भी अगर इसे आकड़ों द्वारा समझना हो तो आप ये जान लो के समुन्द्र के तल मे कुल 8 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा फाइबर ऑप्टिक केबल बिछे हुए हैं। और जमीन मे लाखों किलोमीटर बिछे केबल अलग जिन में से हर क्षण डेटा का आहवान होता है। जिसे दुनिया के अरबों लोग अपने पर्सनल कम्प्यूटर से या पर्सनल मोबाईल से इंटरनेट के साथ जुड़े हुए रहते हैं। गूगल के अनुसार उसके डेटा बेस मे एक हजार अरब से भी ज्यादा वेबपेज है और हर रोज उनकी संख्या बढ़कर रही है। और विश्व मे आज प्रति मिनट 5 लाख से भी ज्यादा वेबपेज बन रहे है अगर आप पुछो के इंटरनेशनल लेवल पे इंटरनेट का कुल कितना डेटा जमा हुआ है तो हकीकत ये है कि इसका जवाब इंटरनेट के दिग्गजों के पास भी नहीं है। 



4.) क्या इंटरनेट एक ही है? या कई और नेटवर्क भी है? 


अगर छोटे - छोटे नेटवर्क की बात करे तो कई सारे संस्थाओं के कम्प्यूटर आपस में एक दुसरे से जुड़े हुए होते हैं। जो अपनी इन्फोर्मेशन के आदान - प्रदान तक सीमित होते हैं। लेकिन जब ऐसे कम्प्यूटर इंटरनेट से जुड जाते हैं तो वो विश्व व्यापी इंटरनेट का भाग बन जाता है। इसके अलावा उन अकेले चुनिंदा कम्प्यूटर के नेटवर्क को हम इंटरनेट के इतने बड़े मायाजाल के समान बिलकुल नही मान सकते। और एक फिडोनेट नाम का नेटवर्क है जिसका कुछ विशेष विधार्थीयो के रिसर्च के लिए उपयोग किया जाता है जिसका अपना ये छोटा सा नेटवर्क है और वैश्विक इंटरनेट के साथ कोई लेना - देना नहीं है इसके अलावा कई देशों की मिलेट्री के पर्सनल या खुफिया नेटवर्क होते हैं। जिनका वैश्विक इंटरनेट के साथ कोई लेना - देना नहीं होता लेकिन इन सब नेटवर्क का वैश्विक इंटरनेट के सामने कुछ भी नहीं है और आज तारीख मे इंटरनेट का उसके जितना बड़ा Alternative कोई नहीं है। 



5.) इंटरनेट का डेटा कहा स्टोर होता है? 



तो जवाब है कोई एक जगह पर नहीं क्योंकि दुनिया मे कई सारे वेब सर्वर है जिन मे करोड़ो TB (terabyte) की हार्डडिस्क होती है और वो अपने सर्वर के हिसाब से माहिती का संग्रह करते हैं ये वेब सर्वर असल में एक टाईप के कम्प्यूटर ही होते हैं जो बहुत बडे कबर्ड की तरह होते हैं और जिनकी कार्यप्रणाली थोड़ी अलग होती हैं इन्फोर्मेशन स्टोरेज इन वेब सर्वर मे Google, Yahoo, infosis, facebook, या ask. Com जैसे कई सारे सर्वर होते हैं। अगर आप अपने ब्राउज़र से गूगल.com लिख के गूगल के सर्च इंजन से कोई भी इन्फोर्मेशन मागोंगे तो उसका जवाब आपको अमेरिका के केलिफोर्निया मे मौजूद गूगल के सर्विस स्टोरेज मे मिलेगा। 



6.) जानकारी चुटकीयों में कैसे मिल जाती है? 


तो देखने जाए तो दरअसल यह काम बहुत पेछिदा है लेकिन विद्युत के स्पीड से होता है। इंटरनेट के कार्यप्रणाली को हम एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं। मान लिजीए की आपने गूगल से the knowledge की official वेबसाईट the gosai के कमांड को टाईप किया तो ये कमांड सबसे पहले आपके लोकल सर्विस प्रोवाइडर यानि स्थानिक ISP तक पहुचेगा यहाँ से आपका कमांड शहर के राउटर कम्प्यूटर नेटवर्क तक पहुचेगा। इसके बाद आपकी फरमाइश को गूगल.Com तक पहुचाया जाएगा। उसके बाद गूगल उसके डेटाबेस मे से the gosai नाम की वेबसाईट का डेटा निकालेगा और उस डेटा को रिवर्स पद्धति से आप तक पहुचाया जाएगा। ये पूरी कार्यपद्धति लगभग प्रकाश की गति से होती है इसलिए हम तक कोई भी डेटा कुछ ही सेकंड में पहुच जाता है। इंटरनेट की दुनिया मे डेटा का आदान - प्रदान 95% under sea फाइबर ऑप्टिक केबल के द्वारा होता है। और सिर्फ 5% ही सेटेलाइट के थ्रु होता है। 



7.) भारत मे इंटरनेट की शुरुआत कब हुईं? 


भारत मे इंटरनेट की शुरुआत 15 अगस्त 1995 के दिन हुई जब गवर्नमेंट कम्पनी VSNL यानि (Videsh sanchaar nigam limited) इसे लोन्च किया और धीरे - धीरे प्राईवेट कंपनी यानि एयरटेल, टाटा, रिलायंस जैसी कम्पनियों ने भी इसे शुरू कर दिया। 



8.)इंटरनेट मुफ्त है तो हमसे पैसे क्यों लिए जाते हैं? 


तो यहाँ पर सच है कि इंटरनेट का आविष्कार और उसकी Functionality हमारे लिए फ्री है लेकिन हम तक इंटरनेट पहुचाने वाले दुनिया में तीन टाईप के सर्वर होते हैं। जिन में से एक टियर 1, दूसरा टियर 2, तीसरा टियर 3, टियर 1 कम्पनियां वो होती है जिन्होंने all ready समुंद्र के अंदर फाइबर ऑप्टिक केबल के पूरे नेटवर्क को बिछा दिया, टियर 2 कम्पनी लोकल कंट्री वाइस जमीन के अंदर केबल को बिछाती है और टियर 3 कम्पनीया यानि हमारे लोकल सर्विस प्रोवाइडर इस तरह इंटरनेट के फ्री होने के बावजूद भी इन केबलों को बिछाने का और उनके मेंटीनेंस का पैसा लगता है जिसके रिटर्न टियर 1 कम्पनीया, टियर 2 कम्पनीया को डेटा बेचती है। टियर 2, टियर 3 , को और टियर थ्री हमसे पैसे लेती है।

 

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